आख़िर ऐसा क्या हुआ?


उस छोटे बच्चे को रंग-बिरंगी चीज़े कितनी पसंद थी!
मां को कहकर अपनी, रंग बिरंगे गुब्बारे खरिदवाता
पापा से कहकर रंग मंगवाता
और copy के पीछे के पन्नों को रंगता।
लेकिन अब उसे एक ख़ास रंग पता नहीं क्यों खटकने लगा है..।

हां,बचपन से ही उसे पीला रंग ज्यादा प्यारा था
पर पहले कोई रंग खटका तो नहीं करता था!
भला किसी रंग से वह नफरत क्यों करने लगा है?


उस छोटे बच्चे को घूमना बड़ा अच्छा लगता था।
छुट्टी मिलने पर "उस महल,उस किले ले जाओ ना" 
कहकर पापा से ज़िद किया करता।
लेकिन अब उसे उन्हीं कुछ इमारतों से दिक्कत होने लगी है..।
जहां कभी घूमने जाने की ज़िद किया करता था,
अब उन्हीं का नाम सुनते भड़कने लगा है..।

हां बचपन में मां जब स्कूल छोड़ने जाती थी,
स्कूल की इमारत देख ज़रूर उसे चिड़चिड़ापन होता था!
पर इन महलों, किलों, मिनारों में तो बड़ा चाऊ से घूमने जाता था।
भला अब वह इन खूबसूरत व बेजुबान इमारतों से क्यों नफरत करने लगा है?


उस छोटे बच्चे को तो बस दूसरा बच्चा दिखने की देरी रहती थी
और उसके साथ खेलने लग जाता था।
अब किसी से दोस्ती का हाथ बढ़ाने से पहले 
उसका पूरा नाम जानना ज़रूरी समझने लगा है..।

हां,वह बच्चा कुछ नामों को बोलने में तोतलाता ज़रूर था।
लेकिन.. भला अब वो दोस्ती करने के लिए भी नाम देखने की क्यों ज़रूरत समझने लगा है?

इतना ही नहीं! अब उसे कुछ ज़बानों से,कुछ पोशाकों से, यहां तक कुछ त्योहारों से
और रब जाने क्या कुछ नहीं से नफरत होने लगी है।
आखिर ऐसा क्या हुआ?
क्योंकि वो छोटा बच्चा तो ऐसा नहीं किया करता था।



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