मुझे लिखना नहीं आता
नहीं आता लिखना मुझको।
लफ्ज़ों का साहिर मैं दूर
ना मन की कोई बात रखने के काबिल हूं।
लेकिन दिन भर में यूं ही आ जाने वाले
हज़ार खयालों में से
जब खयाल कोई तुम्हारा
दिमाग से गुजरता है,
गुज़र नहीं पाता।
चांद पलों के लिए ही लेकिन ठहर सा जाता है,
घड़ी के घंटे वाली सूई सरीखे
कुछ देर अटक सा जाता है।
तुम्हारी कही कोई बात जब
ज़हन में आती है,
मन लाख उदास हो,
लेकिन यार! आ मुझे हंसी जाती है।
गुलाब से जैसे बाग़ महक उठता है,
याद से तेरी चहरा चहक उठता है।
मुझे लिखना..नहीं आता
लेकिन जब खयाल तिरा आता है,
किस तरह,खुद–बखुद,नहीं पता
शेर लिखा जाता है।
(For my bestfriend)
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