ये सजदा
ये सजदा
मैं जो करूं सजदा,
ये ज़मीं नापाक न हो जाए,
जोश-ए- शिकवा में बेज़ुबां भी
कहीं बेबाक न हो जाए।
जिसने उठा रखा है हिमालय को,
वो गुनाहों के भार से धस न जाए,
समझकर इसे तौहीन-ए-इलाही,
गुस्से से कहीं फट न जाए..
"कि तौबा तो नाम है शर्मिंदगी का!
ये करते हैं तौबा कि वही गुनाह एक बार करेंगे
और गिरते हैं सजदे में,
कि बदले में इसके चंद अय्याशियां
कुछ और करेंगे।"
मैं जो करूं सजदा,
ये ज़मीं नापाक न हो जाए,
ये ज़मीं नापाक न हो जाए,
जोश-ए- शिकवा में बेज़ुबां भी
कहीं बेबाक न हो जाए।
कहीं बेबाक न हो जाए।
Shikwa-complaint
Tauheen-e-Ilahi: God's disgrace/blasphemy
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