ये रसहीन जीवन

 ये रसहीन जीवन 


 क्या बच्चों ने छोड़ दी शरारत करना

घर के बड़ों पर आफत ढाहना!?
मना किए जाने पर भी शोर मचाना।
इधर उधर चूहे बिल्लियों की तरह दौड़ लगाना?

क्या अब अंकलों ने छोड़ दिया है 
हर शाम चाय पान की दुकानों पर ठहाका लगाना?
क्रिकेट राजनीति पर चर्चा से लेकर 
पुराने दिनों के अफसाने सुनाना।
बगल वाले गुप्ता जी के साथ हुआ
कोई मज़दार किस्सा विस्तार में सुनाना
एक दूसरे की टांग खिंचाई करते करते शाम बिता देना।


क्या अब कोई लिखता नहीं..चुपचाप
खत अपने महबूब के नाम है?
न रहता अब कोई ख़त-ए-ख़ास का मुंतज़िर!
 वो आसरा..वो बेताबी हो गई कब की बंद है।।

अब जनाब "online -offline" का ज़माना हैै।
अब देर तक छत पे खड़ा रहकर
दूसरे वाले छत पर किसी की राह नहीं देखा करते।
Online दिखते ही "hey!" भेजना ही "more than enough" है!

न अब यारों की होती घंटों लंबी गुफ्तुगु है,
उधर एक मित्र सबकी ग्रुप सेल्फी लेने में व्यस्त है।
"ये फिल्टर कैसा लग रहा है,हां ये वाला मस्त है!"
जैसे बिना insta पर #Meetingbestie लिखकर अच्छी story ना डालो 
तो ये मिलना जुलना  व्यर्थ है।

ये बच्चे पेड़ों पर चढ़,आम तोड़ के खाने 
के आनंद से है बिलकुल अनजान।
कितकित खेलना नहीं,
फोन पे टिपटिप कर गेम्स खेलने
को  असली मजा लिया है मान।

कैसे हैं ये आशिक़ अब के 
शेर-ओ-शायरी नहीं करते?
अब पूरा मोहल्ला एक साथ बैठ,
बातें ढेर सारी नहीं करते।

ऐसा रसहीन जीवन जीने में भी कोई आनंद है..?
आप ही बताइए,ये बेरंग जिंदगी आपको कहां तक 
पसंद है?

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